में पहाड़ों में रहता हूं। यह जगह कोई कल्पना से कम नहीं। यहां का मौसम मतलब, जन में सामने वाली नदी उबालकर बाप बन जाए और शाम में वहीं सैलाब आ जाए। इन दिनों घर से बाहर जाना वंचित हो गया है। नाभि होता तब भी मुझे बाहर जाने कि ज्यादा आदत नहीं, लेकिन कुछ लोगों को है, जो अपनी जान के लिए अब नजरबंद है। मेरे दोस्त ने बोला कि आप अब्दुल्लाह का दर्द समझ आया। तब मैंने बोला.... खैर छोड़िए सियासत फिर कभी। वैसे हिंदुस्तान में पहली बार होगा कि सभी पार्टी एकजुट होकर कुछ बोली हो। विडंबना है यह काम एक वायरस ही करवा सकता था, वो भी चीन का, जैसा कि लोग और मीडिया कहते हैं। वायरस ना हुआ साहब क्या हो गया पूरी दुनिया घर पर बंद है।
मैं भी घर पर ही बंद हूं और वह 10 बरस का बच्चा भी जिसने अपनी मां से एक हफ्ता पहले स्कूल ना जाने की जिद की थी। मेरे छत से उसका कमरा दिखता है। अजीब बात यह है सिर्फ मुझे दिखता है। एक तो दिन तो वे बहुत खुश दिखा, चिल्ला चिल्ला कर पूरे घर में भागता। फिर जैसे-जैसे धूप बादल में छुप गई, उसकी उत्सुकता भी छुप गई। ना कोई भाई-ना कोई दोस्त। वैसे भी अब बड़ा हो गया है, मां बाप के साथ थोड़ी खेलेगा। चौथे दिन तक तो घणा बोर हो गया था। इतना प्यार उसे अपने स्कूल से पहले कभी ना हुआ होगा।
अगले दिन वही बॉर्डम। उसने अपने कमरे की खिड़की से बाहर देखा। इधर और उधर सर सन्नाटा। तभी उसे एक घोड़ा दौड़ते हुए दिखाओ। टप टप टप टप उसके कदमों की आवाज।
अब आप तो जानते ही है, इंसानी जींस में ही कहानियां होती है, वो खुद भी तो एक कहानीकार होता है।
घोड़े के पास आते देखा तो उसके ऊपर एक लड़की बैठी हुई थी। गुनगुन। उसी की कक्षा में पढ़ती है। हाथ में प्लास्टिक का गिटार लिए वो उसके कमरे के नीचे खड़ी हुई और गाना गाने लगी। बच्चा उसका गाना सुनने लगा कि एक पुलिस वाला उसे दिखाओ जो कि उसके जैसे 50 बच्चों को डंडों से पीटकर एक - एक को गोली मार दे रहा है। वह यह देखकर डर गया और गुनगुन को ऊपर आने को कहा। पुलिस उस तक आ ही गई थी कि उसके सौतेले बाप ने उसे जबरन उस हाथी से नीचे उतारा और उस पुलिस वाले को हाई-फाई देते हुए भाग गया वह लड़की मेरा नाम पुकारती रही "बच्चा बच्चा"। और बारिश शुरू हो गई और वह बच्चा खिड़की पर पर्दा कर गुनगुन को बचाने का प्लान बनाता रहा।
यकीनन उसकी कल्पना इस जगह से थोड़ी भी कम नहीं। वो भी पहाड़ों में रहता है और यह जगह किसी कल्पना से कम नहीं।
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